जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान अल्मोड़ा में विद्यालय सुरक्षा कार्यशाला का समापन किया गया।
दया जोशी
- प्रशिक्षण कार्यशाला मेंप्राचार्य जी०जी०गोस्वामी ने बताया कि बच्चों की शिक्षा हेतु विद्यालय सबसे उचित प्रवेश स्थल है। बच्चों के समग्र विकास में शिक्षा एवं शिक्षा के सुरक्षित वातावरण की अहम् भूमिका है। विभिन्न आपदा जनित घटनाओं का स्कूली बच्चों एवं उनके शिक्षण कार्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। आपदा के कारण विद्यालयों का बंद हो जाना या विद्यालयों में राहत केन्द्रों आदि का संचालित होना, विद्यालय जाने के रास्ते अवरूद्ध हो जाना, बच्चों का विद्यालय न आना, बच्चों का जीवन व स्वास्थ्य संकट में पड़ जाना बच्चों के भविष्य के निर्माण में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बच्चों के लिए विद्यालय एक ऐसा स्थान है जहाँ वे सबसे ज्यादा समय व्यतीत करते हैं और शिक्षा ग्रहण करते हैं। बच्चे अपने घर से विद्यालय आने जाने में कई आपदाओं के जोखिमों का सामना भी करते हैं। आपदाओं के समय विद्यालय की अन्य गतिविधियाँ एवं शिक्षण कार्य अवरूद्ध हो जाने के कारण बच्चों का वैयक्तिक, मानसिक, बौद्धिक एवं सामाजिक विकास बाधित हो जाता है। आपदाओं से बच्चों के घायल हो जाने एवं यहाँ तक कि गम्भीर स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती है। आपदाओं के कारण बच्चे कई प्रकार की बीमारियों से ग्रसित भी हो जाते है। इन स्थितियों में विद्यालय में बच्चों एवं शिक्षकों की उपस्थिति कम हो जाती है और धीरे-धीरे बच्चों के छीजन दर (ड्राप आऊट) में वृद्धि होती जाती है।
कार्यशाला समन्वयक डॉ प्रकाश चन्द्र पन्त ने प्रशिक्षण के दौरान कहा कि विगत विनाशकारी घटनाओं में असुरक्षित निर्माणों के ढह जाने, जानकारियों के अभाव, पहले से तैयारी न होने एवं आत्मरक्षा के तरीकों की जानकारी न होने के कारण विद्यालयों एवं घरों में बच्चों की ही मौतें ज्यादा हुई हैं। आपदाओं से बच्चों के कुप्रभावित होने का एक प्रमुख कारण बच्चे किसी भी योजना निर्माण अथवा निर्णय का हिस्सा नहीं बनाये जाते, चाहे वह घर की कोई योजना हो या विद्यालय तथा सामुदायिक स्तर की कोई योजना हो। इस कारण उनकी क्षमतावृद्धि नहीं हो पाती है और वे बहुत सारी आपदारोधी क्षमतावृद्धि के लिए आवश्यक जानकारियों से वंचित रहते है ।
बच्चों की क्षमतावृद्धि हेतु सशक्त माध्यम विद्यालय है। वयस्कों की तुलना में बच्चे जल्दी सीखते हैं और अपने व्यवहार को आसानी से माहौल के अनुरूप ढाल लेते हैं। बच्चे प्रेरणा का प्रभावी श्रोत भी होते हैं। वे जो विद्यालय में सीखते हैं, संभवतः आगे अपने साथियों, भाई-बहनों तथा माता-पिता एवं अभिभावकों को बताते है। इस प्रकार राज्य में बच्चों की आधी आबादी को यदि आपदाओं की रोकथाम, न्यूनीकरण, तैयारियों एवं रिस्पांस में सक्रिय रूप से जोड़ा जाए तो न केवल वे सुरक्षित रहेंगे अपितु उनके माध्यम से समाज एवं राज्य को सुरक्षित बनाने में सहायता मिलेगी । प्रशिक्षण में जनपद अल्मोड़ा के 11 विकासखंडों के 97 शिक्षकों ने प्रतिभाग किया। इस दौरान कार्यशाला समन्वयक डॉ0 प्रकाश पन्त, प्राचार्य जी0जी0गोस्वामी, जी0एस0 गैरा, डॉ0विशाल शर्मा, हरि सिंह मेहता ने संबोधित किया।