विकासनगर। जौनसार बावर के कैमाड़ा बुग्याल में दो दिवसीय जखोली मेले का शनिवार को आगाज हुआ। पहले दिन करीब दस हजार लोग मेला स्थल पर पहुंचे। जबकि प्रवास पर निकले बाशिक महासू महाराज दो दिनों तक कैमाड़ा में ही विराजमान रहेंगे। मेले के पहले दिन लोक संस्कृति के अनुपम छटा देखने को मिली। पर्यटकों ने भी मेले का जमकर आनंद लिया, जबकि दूर-दराज से आए लोगों ने बाशिक महासू महाराज की देव पालकी को कांधा लगाकर धार्मिक परंपरा का निर्वहन किया।
देवदार के घने जंगल के बीच कैमाड़ा बुग्याल में आयोजित दो दिवसीय जखोली मेले के पहले दिन शनिवार को जौनसार-बावर, उत्तरकाशी, टिहरी, हिमाचल प्रदेश से लोग जखोली मनाने पहुंचे। यहां हर साल मेले में बाशिक महासू महाराज की देव पालकी श्रद्धालुओं को दर्शन देने पहुंचती है। शनिवार को मेले में आए हजारों लोगों ने बाशिक महाराज की पालकी पर पुष्प वर्षा कर परपंरागत तौर से स्वागत किया। जखोली मनाने आए ग्रामीणों ने हारुल के साथ ढ़ोल-दमोऊ की थाप पर तांदी-नृत्य कर देव स्तुति की।
मेले में देर शाम तक लोक संस्कृति के अनूठे रंग देखने को मिले। देव पालकी को कांधा लगाने के लिए लोगों में होड़ मची रही। मेले में पहुंचा हर कोई देवता से आशीर्वाद लेने को उत्सुक दिखा। मेले में युवाओं के उत्साह के साथ ही पुरानी पीढ़ी की परंपराएं भी बदस्तूर निभाई गईं। बुजुर्ग महिला पुरुषों के साथ युवाओं ने तांदी, रासों नृत्य कर देवदार के घने जंगल में मंगल कर दिया। रात भर लोगों ने खुले आसमान के नीचे जागरण कर बाशिक महासू महाराज की स्तुति की। इस दौरान बजीर दीवान सिंह राणा, स्याणा रिंकू पंवार, विरेंद्र सिंह, किशन सिंह, सुनील सिंह, जयपाल पंवार, ब्रह्मानंद, अभिराम, सूरतराम, प्यारे लाल, नरेंद्र जोशी, रामचंद्र जोशी, कृपाराम, शैलेंद्र पंवार, बलवीर पंवार, टीकम सिंह, वतन सिंह, बलवीर चौहान आदि मौजूद रहे।
आध्यात्म के साथ ही सामाजिक सहभागिता की भावना
कैमाड़ा के जखोली मेले में आध्यात्म के साथ ही सामाजिक सहभागिता की भावना भी दिखाई देती है। यहां पहुंचे लोग बिना भेद भाव के एक साथ रात्रि जागरण तो करते ही हैं। भंडारे में आपसी मदद से भोजन तैयार करते हुए सामूहिक भोज किया जाता है।